भारत में चेक बाउंस (Cheque Bounce) के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ट्रायल कोर्ट में लंबित मामलों का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं विवादों से जुड़ा होता है। इसी गंभीर समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब इन मामलों को तेजी से निपटाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस विवाद ज्यादातर वित्तीय लेन-देन और व्यावसायिक मामले होते हैं, इसलिए इनमें आरोपी को सजा देने की बजाय भुगतान सुनिश्चित कराने पर जोर दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता: क्यों जरूरी थे नए नियम?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच ने बताया कि कई राज्यों की ट्रायल कोर्ट में लंबित मुकदमों का लगभग आधा हिस्सा चेक बाउंस मामलों का है। खासकर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों की अदालतों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है।
ऐसे केस सालों तक चलते रहते हैं।
शिकायतकर्ता को पैसे वापसी में देरी होती है।
आरोपी भी लंबे मुकदमे से परेशान होता है।
इन्हीं कारणों से कोर्ट ने 1 नवंबर 2025 से पूरे देश में नए नियम लागू करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश
समन भेजने का डिजिटल तरीका
अब अदालतें आरोपी को सिर्फ डाक या पुलिस के जरिए ही नहीं, बल्कि
ईमेल,
मोबाइल नंबर,
व्हाट्सएप
और अन्य मैसेजिंग ऐप्स के माध्यम से भी समन भेज सकेंगी।
👉 शिकायतकर्ता को आरोपी का मोबाइल और ईमेल पता एफिडेविट के साथ देना अनिवार्य होगा।
दस्ती सर्विस (Personal Service)
शिकायतकर्ता को आरोपी तक समन की कॉपी व्यक्तिगत रूप से पहुंचानी होगी और फिर कोर्ट में हलफनामा देकर इसकी पुष्टि करनी होगी।
ऑनलाइन भुगतान की सुविधा
अब समन के साथ ही आरोपी को एक सुरक्षित क्यूआर/यूपीआई लिंक दिया जाएगा।
👉 आरोपी चाहे तो तुरंत ऑनलाइन भुगतान करके केस निपटा सकता है।
समरी ट्रायल को प्राथमिकता
अब अदालतें चेक बाउंस मामलों को संक्षिप्त सुनवाई (समरी ट्रायल) में निपटाएंगी।
👉 यदि अदालत किसी मामले को सामान्य मुकदमे की तरह चलाना चाहेगी, तो उसे कारण दर्ज करना होगा।
अंतरिम जमा (Interim Deposit)
जिला अदालतें उपयुक्त मामलों में आरोपी को आंशिक राशि तुरंत जमा करने का आदेश दे सकती हैं।
दोनों पक्षों की अनिवार्य उपस्थिति
समन तामील होने के बाद आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों की अदालत में व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य होगी। सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही छूट दी जा सकेगी।
शाम की अदालतें (Evening Courts)
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि शाम की अदालतों का अधिकार क्षेत्र बढ़ाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा चेक बाउंस केस जल्दी निपट सकें।
निगरानी और डैशबोर्ड सिस्टम
दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की जिला अदालतों के लिए डैशबोर्ड बनाया जाएगा, जिसमें मामलों की प्रगति अपडेट की जाएगी।
👉 जिला जज हर तीन महीने में हाई कोर्ट को रिपोर्ट देंगे।
लोक अदालत और मध्यस्थता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस मामलों को जहां संभव हो, मध्यस्थता या लोक अदालत के जरिए निपटाया जाए ताकि दोनों पक्षों का समय और धन बचे।
समझौते (Compounding) की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर आरोपी राशि चुका देता है, तो मामला खत्म किया जा सकता है। हालांकि भुगतान के समय के अनुसार अतिरिक्त राशि लग सकती है:
जिरह से पहले भुगतान: बिना अतिरिक्त शुल्क।
जिरह के बाद, लेकिन फैसले से पहले: 5% अतिरिक्त।
हाई कोर्ट में अपील/रिवीजन के दौरान: 7.5% अतिरिक्त।
सुप्रीम कोर्ट में समझौता: 10% अतिरिक्त।
चेक बाउंस कानून: धारा 138 एन.आई. एक्ट
Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों में अधिकतम 2 साल की सजा का प्रावधान है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दोषी को Probation of Offenders Act, 1958 का लाभ मिल सकता है।
👉 यानी जेल की बजाय जुर्माना और भुगतान ही पर्याप्त होगा।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश..
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
👉 “चेक बाउंस मामले मुख्यतः वित्तीय विवाद हैं। इसलिए इन्हें लंबा खींचने की बजाय भुगतान सुनिश्चित करना ही न्याय का उद्देश्य होना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आम नागरिकों और व्यापारियों दोनों के लिए राहत भरा है।
अब समन डिजिटल माध्यम से भेजा जाएगा।
आरोपी को ऑनलाइन भुगतान सुविधा मिलेगी।
अदालतें समरी ट्रायल और लोक अदालत को प्राथमिकता देंगी।
👉 इससे न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी बल्कि शिकायतकर्ता को जल्दी राहत भी मिलेगी।
यह ऐतिहासिक आदेश 1 नवंबर 2025 से पूरे देश की निचली अदालतों में लागू होगा।
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